Mirza Ghalib Shayari: गालिबचे हे 8 शेर वाचून आठवेल जुनं प्रेम

साम टिव्ही ब्युरो

दम निकले

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले,

बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।

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दवा क्या है

दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है,

आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।

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रास्ते में आया था

हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो,

हमारा शहर तो बस यूँ ही रास्ते में आया था।

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कमाल करते हो

दुःख दे कर सवाल करते हो,

तुम भी ग़ालिब कमाल करते हो।

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हाल अच्छा है

उनको देखने से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,

वो समझते हैं की बीमार का हाल अच्छा है।

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ख़याल अच्छा है

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,

दिल की खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।

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कैसे देखते होंगे

हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,

न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे।

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तो क्या कीजे

दर्द हो दिल में तो दवा कीजे,

दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजे।

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